Monday, December 7, 2015

पृथ्वीपुत्र; अध्याय १, प.स. १

पृथ्वी, एक खूबसूरत ग्रह | सूरज के परिवार में जड़ा एक अनमोल रत्न | इसकी अनमोलता का कारण था इसकी जीवन प्रदान करने की क्षमता | पूरे सौर परिवार में पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह था जिसके पास जीवन प्रदान करने की अद्भुत क्षमता थी | बहुत वर्षों पूर्व शायद इस ग्रह का निर्माण ही जीवन प्रदान करने के लिए किया गया था | उपयुक्त ताप, जल की सुलभता, प्राणवायु की उपस्थिति, और अन्य सभी कारक जो जीवन प्रदान करने के लिए आवश्यक होते हैं, पृथ्वी अपने अन्दर समेटे हुए थी | परिणामस्वरूप इस अनमोल ग्रह पर जीवन रूपी वृक्ष का बीज पड़ चुका था | धीरे – धीरे यह वृक्ष बड़ा होता गया अर्थात पृथ्वी पर अनेक प्रजातियों ने जन्म ले लिया था | परन्तु जहाँ निर्माण है वहाँ विनाश भी कदम से कदम मिलाकर चलता है | वृक्ष की शाखाओं की तरह इस जीवन रूपी वृक्ष की शाखाओं का भी टूटना स्वभाविक ही था | अतः अनेक प्रजातियाँ काल के मुख में समा गयीं |

                                                    क्रमशः ...

Friday, November 20, 2015

उठ गई है ये कलम एक बार फिर से !

संसार भर के बन्धु बांधवों को नमस्कार!
काफी दिन हो गए ये कलम यूँ ही रखी है एक तरफ बेचारी सी, आज इसने मुझे देखा और कहा, "भले आदमी, तू मुझे क्यूँ भूल गया? सही है तुम अब "डिरेक्टर गिरी" करने लग गये | पर क्यूँ भूल गये कि मुझसे ही तो तुमने अपनी कहानी लिखी थी |"
सुना उसकी बातों को तो फिर से याद सी उमड़ आई उसकी | वो हाथ से उस कलम के बदन को उठाना | वो अहसास जोकि विस्मृत सा हो गया था पुनः जीवित हो चला है |