संसार भर के बन्धु बांधवों को नमस्कार!
काफी दिन हो गए ये कलम यूँ ही रखी है एक तरफ बेचारी सी, आज इसने मुझे देखा और कहा, "भले आदमी, तू मुझे क्यूँ भूल गया? सही है तुम अब "डिरेक्टर गिरी" करने लग गये | पर क्यूँ भूल गये कि मुझसे ही तो तुमने अपनी कहानी लिखी थी |"
सुना उसकी बातों को तो फिर से याद सी उमड़ आई उसकी | वो हाथ से उस कलम के बदन को उठाना | वो अहसास जोकि विस्मृत सा हो गया था पुनः जीवित हो चला है |
काफी दिन हो गए ये कलम यूँ ही रखी है एक तरफ बेचारी सी, आज इसने मुझे देखा और कहा, "भले आदमी, तू मुझे क्यूँ भूल गया? सही है तुम अब "डिरेक्टर गिरी" करने लग गये | पर क्यूँ भूल गये कि मुझसे ही तो तुमने अपनी कहानी लिखी थी |"
सुना उसकी बातों को तो फिर से याद सी उमड़ आई उसकी | वो हाथ से उस कलम के बदन को उठाना | वो अहसास जोकि विस्मृत सा हो गया था पुनः जीवित हो चला है |
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